भारत में महिला उद्यमियों की चुनौतियां


डॉ. राजीव कुमार 
विश्व स्तर पर, महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक नए उद्यम शुरू करने की संभावना रखते हैं। अनुभवों से प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि महिलाओं में कम अभिमान और अत्यधिक विनम्रता का भाव होता है, जो नकारात्मक रूप से एक उद्यमी के रूप में जोखिम लेने वाले व्यवहार और उद्यमिता में बड़े स्तर पर भागीदारी को प्रभावित करता है। यदि केवल महिलाएं पुरुषों की तरह अशिष्ट और अति आत्मविश्वास वाली होतीं! वास्तव में, हमारी अपनी भारतीय महिलओं के लिए एक आदर्श, किरण मजूमदार-शॉ, एक उद्यमी के रूप में अपनी यात्रा पर टिप्पणी करती हैं, आपको यथास्थिति को चुनौती देते रहना होगा। मैं अपने दम पर कुछ कर रही थी, मैं कुछ पथ-प्रदर्शक कार्य कर रही थी, मैं उस अवस्था में किसी को भी नहीं देख सकती थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं इसे अकेले कर रही थी, मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ अलग कर रही थी और मैं सामान्य बुद्धि, काफी दृढ़ संकल्प और बहुत सारे मूर्खतापूर्ण साहस के साथ सभी कार्य कर रही थी। मैं आगे बतला सकती हूं. दुर्भाग्यवश, केवल कम अभिमान ही एक कारण नहीं है जो भारत में महिलाओं को सफल उद्यमी बनने से रोक रहा है। भारत में महिलाओं के स्वामित्व वाले 13.5 और 15.7 मिलियन उद्यम हैं। सरकार के हस्तक्षेप, वित्तीय पहुंच में सुधार और शिक्षा तक पहुंच के कारण पिछले दशक में महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों में 14त्न से 20त्न की वृद्धि हुई है। हालाँकि, ऐसी कई चुनौतियाँ हैं जिनका सामना महिला उद्यमियों को करना पड़ता है जो उनके पुरुष समकक्षों के लिए मामूली नहीं हैं। मास्टरकार्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कारोबारी माहौल महिला उद्यमियों के लिए अनुकूल नहीं है। ऐसी अनेक सामाजिक, तकनीकी और वित्तीय बाधाएं हैं जो महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों के विकास में बाधा हैं। शुरूआत करते हैं, कुछ फर्मों को वित्तीय और प्रशासनिक कारणों से महिलाओं के स्वामित्व वाली फर्मों के रूप में पंजीकृत किया जाता है लेकिन वास्तव में उनका प्रबंधन और संचालन पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, महिलाओं के स्वामित्व वाली फर्मों का एक बड़ा हिस्सा एक व्यक्ति वाला उद्यम है, जहां आमदनी कम है और पुरुषों के स्वामित्व वाली फर्मों की तुलना में आकार छोटा है।
अधिकांश महिलाएं आज भी सहायक कार्य के रूप में व्यवसायिक गतिविधियों को आगे बढ़ा रही हैं क्योंकि वे घर के अधिकांश कामों को करना जारी रखती हैं। वे अक्सर बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जिस प्रकार का व्यवसाय महिलाएं करती हैं उसकी प्रकृति भी पुरुषों की तुलना में अलग है, इसलिए ऋण और समरूपी ऋण की उनकी आवश्यकता अलग है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को अक्सर घर से बाहर निकलने से पहले अपने परिवार में एक पुरुष सदस्य की अनुमति की आवश्यकता होती है और अक्सर सुरक्षा चिंताओं या सामाजिक मानदंडों के कारण पड़ोस के बैंक जाने के लिए उसे एक पुरुष रिश्तेदार को ले जाना पड़ता है। अनेक कारणों से महिलाओं की वित्तीय संसाधनों तक पहुंच सीमित है। महिलाएं उधार से अधिक बचत करती हैं, भारत और विश्व स्तर पर एक खेत या व्यवसाय को चलाती हैं, या उसका विस्तार करती हैं। आर्थिक सहायता के स्रोत के रूप में अनौपचारिक, सामाजिक नेटवर्क अक्सर महिलाओं के लिए कम उपलब्ध होता है और अक्सर उच्च आय वाले परिवारों की महिलाओं तक सीमित होता है। व्यवसाय शुरू करने के लिए परिवार के सदस्यों या दोस्तों से उधार लेना भारत में कृषि क्षेत्र या निर्वाह करने संबंधी उद्यमियों में से अनेक के लिए कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा, परिवार की आमदनी और बचत के उपयोग पर महिलाओं की लेन-देन की शक्ति कम होती है। यह उनकी स्वतंत्र, औपचारिक वित्तीय स्रोतों तक पहुंच को बहुत महत्वपूर्ण बनाता है। हालांकि, विश्व बैंक के ग्लोबल फाइंडेक्स डेटाबेस के अनुसार,  महिलाओं की तुलना में अधिक भारतीय पुरुषों ने एक वित्तीय संस्थान से उधार लेने या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने की जानकारी दी है। वित्तीय बाजारों और उत्पादों तक पहुंच से जुड़े अनेक मुद्दों के कारण लिंग अंतर मौजूद है। भले ही महिलाओं के पास समान संपत्ति का अधिकार हैं, लेकिन उन्हें आमतौर पर अपने परिवार से विरासत में संपत्ति नहीं मिलती है। इसके परिणामस्वरूप, महिलाओं की औपचारिक वित्तीय बाजारों से पैसे उधार लेने के बाद ऋण के भुगतान के लिए सुरक्षा के रूप में कुछ गिरवी रखने तक पहुंच नहीं है। औपचारिक वित्तीय बाजारों तक सीमित पहुंच का अक्सर उनकी क्रेडिट रेटिंग पर नकारात्मक असर पड़ता है और बदले में कम ब्याज दरों ऋण प्राप्त करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है। यह आवश्यक है कि ऋणों को छोटे टिकट के आकार, कम ब्याज दरों और वित्तपोषण संरचनाओं के साथ रूचि अनुकूल बनाया जाए जो महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों की जरूरतों को पूरा कर सकते हों। नीति आयोग का डिजिटल प्लेटफार्म – महिला उद्यमिता मंच (डब्ल्यूईपी) एक ऐसी पहल है जो महिला उद्यमियों को जरूरी जानकारी हासिल करने में आने वाली दिक्कतों को दूर करता है। इच्छुक महिला उद्यमी इस पोर्टल पर पंजीकरण कराकर विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकती हैं और साथ ही अपने व्यवसाय के लिए लेखाकार जैसे सेवा प्रदाताओं से भी सपंर्क कर सकती हैं। अभी कुल 13 हजार महिला उद्यमी इस पोर्टल पर पंजीकृत हैं। महिला उद्यमियों के कठोर परिश्रम और उनकी उद्मशीलता के प्रयासों को पहचान और सम्मान देने के लिए नीति आयोग द्वारा 2016 में ' वूमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडियाÓ  यानी भारत को बदलने वाली महिलाएं (डब्ल्यूटीआई) पुरस्कार की शुरुआत की गई थी। इन पुरस्कारों के चौथे संस्करण के विजेताओं की घोषणा 8 मार्च 2020 को की जाएगी। इसके लिए महिला उद्यमियों के समूह में से शीर्ष 30 का चयन किया गया है। इस वर्ष डब्लयूईपी में पंजीकरण कराने वाली करीब 2,300 महिला उद्यमियों से प्राप्त आंकड़े इन महिला उद्यमियों द्वारा झेली गई चुनौतियों का गवाह है जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इनमे से 60 फीसदी उद्यम या तो निजी उद्यम हैं या फिर इनका मालिकाना हक पूरी तरह से महिला उद्यमियों के हाथ में है। इनमें से ज्यादातर उद्यम 30 लाख रूपए से भी कम की रकम से शुरु किए गए हैं और 84 प्रतिशत ऐसे हैं जिनका कुल करोबार एक करोड़ रूपए से भी कम का रहा है। इन उद्यमों में से 80 प्रतिशत शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में नवाचार से संबंधित हैं। दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में लगाए गए ऐसे उद्यम ज्यादातर शिक्षा,विनिर्माण, हस्तशिल्प और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के हैं और जबकि कृषि क्षेत्र से जुड़े ऐसे उद्यम ज्यादातर तीसरी श्रेणी के शहरों में हैं। इन सभी महिला उद्यमियों  के समक्ष पूंजी की कमी, जानकारी का अभाव तथा बाजारों तक पहुंच में दिक्कत प्रमुख कारोबारी चुनौतियां रही हैं। इनका यह भी कहना है कि निवेशक उनकी कारोबारी जरुरतों के लिए छोटे कर्ज देने में रूचि नहीं लेते।
डिजिटल वित्तीय साधन महिला उद्यमियों को वित्तीय संस्थाओं तथा पूंजी की उपलब्धता से जुड़ी जानकारियां हासिल करने में मदद कर सकता है। इसके जरिए महिला उद्यमी मोबाइल फोन या इंटरनेट के माध्यम से अपने बैंक खातों से लेन-देने कर सकती हैं। इससे बैंक तक जाने आने में लगने वाले समय तथा इसपर होने वाले यात्रा खर्च की बचत हो सकती है और यह समय वह अपने कारोबार को बढ़ाने में लगा सकती हैं। इस तरह की बचत महिला उद्यमियों के लिए काफी फायदे की इसलिए होती है क्योंकि उनका उद्यम ज्यादातर छोटे आकार का होता है जिसमें बिक्री और मुनाफा दोनों कम होता है। डिजिटल वित्तीय साधन महिला उद्यमियों के उन परिवारजनों  की सुरक्षा चिंताओं का भी समाधान करते हैं जो नहीं चाहते कि उनकी पत्नियां या बेटियां कारोबारी जरूरतों या बैंक लिए अकेले यात्रा करें। इसका एक लाभ यह भी है कि तैयार उत्पादों तथा खरीद प्रक्रिया का डिजिटल लेन-देन के रिकॉर्ड से बेहतर प्रबंधन संभव हो पाता है।
ग्राहक सेवाओं से जुड़े बिलों के नियमित भुगतान और इन्वेंट्री प्रबंधन के लिए खासतौर से तैयार किए गए डिजिटल वित्तीय साधन ऐसे नए उद्यमों के लिए कर्ज और उसकी अदायगी को ब्यौरा रखने में काफी मददगार हो सकते हैं जिनके पास पहले से ऐसा कोई ब्यौरा नहीं होता या फिर जो कर्ज के एवज में किसी तरह की कोई गांरटी नहीं दे सकते। बैंक खातों में अनिवार्य न्यूनतम राशि रखने से छूट,  छोटे और मध्यावधि कर्ज के प्रावधान तथा माइक्रो सेविंग आदि कुछ ऐसे वित्तीय उत्पाद हैं जो डिजिटल साधनों के माध्यम से हासिल किए जा सकते हैं। महिला उद्यमियों के बैंक खातों में सीधे पैसा भेजने की व्यवस्था से महिलाओं को ज्यादा वित्तीय स्वायत्तता हासिल मिल सकती है जिससे वे ज्यादा बचत कर सकती हैं और अपने कारोबार में निवेश बढ़ा सकती हैं। नीति आयोग गो डिजिटल प्लेटफार्म डब्ल्यूईपी महिला उद्यमियों में बहीखाता तैयार करने, आयकर में छूट के लिए लेखाकारों से संपर्क करने , सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने तथा प्रभावी निवेश प्रबंधन जैसे कौशल विकसित करने में भी काफी मददगार हो सकता है। 
वैसे तो प्रौद्योगिकी में महिला उद्यमियों के कारोबार की दक्षता बढ़ाने की व्यापक क्षमता होती है, लेकिन प्रौद्योगिकी तक उनकी पहुंच अत्यंत सीमित होती है। बिजली तक सीमित पहुंच और सुदृढ़ एवं सर्वव्यापी डिजिटल नेटवर्क का अभाव भारत में डिजिटल वित्तीय क्रांति के मार्ग में आम बाधाएं हैं। इसके अलावा, भारत में पुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत कम महिलाओं के पास मोबाइल हैंडसेट अथवा इंटरनेट की सुविधा होती है। यही नहीं, महिलाओं द्वारा स्मार्ट फोन का उपयोग करने और नए वित्तीय उत्पादों तथा किसी नई प्रौद्योगिकी के साथ प्रयोग करने की कम संभावना रहती है। यह भी पाया गया है कि वैसे तो महिलाएं सोशल मीडिया एप्लीकेशंस से अवगत रहती हैं, लेकिन उन्हें उन विभिन्न वित्तीय साधनों अथवा उत्पादों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती है, जो उनका कारोबार बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं। वैसे तो देश में पुरुषों और महिलाओं की शिक्षा में अंतर काफी घट गया है, लेकिन पुरुषों और महिलाओं की वित्तीय साक्षरता में व्यापक अंतर होने से उनका कारोबार काफी प्रभावित हो सकता है। ये चुनौतियां महिलाओं द्वारा डिजिटल ढंग से वित्तीय साधनों अथवा उत्पादों का उपयोग करना और उद्यमियों के रूप में उनकी उत्पादकता को काफी सीमित कर देती हैं।
डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग कर वित्तीय साधनों या उत्पादों तक पहुंच बढ़ाना उद्यमिता में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दृष्टि से अत्यंत प्रभावकारी है। हालांकि, यह इस समस्या के समाधान का केवल एक हिस्सा है। ऐसी कई अन्य सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां भी हैं जिनके मोर्चे पर सुधार की जरूरत है। सरकार, निजी क्षेत्र और गैर लाभकारी संगठनों ने महिलाओं के स्वामित्व वाले कारोबार में मदद के लिए कई योजनाओं एवं पहलों का शुभारंभ किया है। महिलाओं के स्वामित्व वाली 3 प्रतिशत एमएसएमई फर्मों से अनिवार्य खरीद अथवा महिला उद्यमियों से जुड़े कौशल प्रशिक्षण और प्रमाणन कार्यक्रम इसके कुछ उदाहरण हैं। बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए 'दिन के समय सुरक्षित, किफायती और सुगम्य देखभाल वाली विश्वसनीय व्यवस्थाÓ, सामाजिक संरक्षण योजनाएं जैसे कि स्वास्थ्य एवं कारोबार बीमा योजनाएं और घरेलू कामकाज में पुरुषों एवं महिलाओं की समान भागीदारी ऐसे कुछ सामाजिक सुधार हैं, जो महिला उद्यमियों को आने वाले दशक में भारत की विकास गाथा का एक अहम हिस्सा बनने में मददगार साबित हो सकते हैं।
डॉ. राजीव कुमार नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं, और पंखुड़ी दत्त, नीति आयोग में शासकीय नीति परामर्शदाता ( आर्थिक और वित्त) हैं। इनके द्वारा रखे गए विचार व्यक्तिगत हैं।